सखि के लिए

सखि – ये शब्द सुनने में जितना मीठा है, इस सम्बोधन को पाने वाली और देने वाली, दोनों के बीच भी बड़ी प्यारी गूँज होती है, एक गीत की, जो सतत चलती रहती है, सुदूर वनों के जलप्रपात सी गूंजती रहती है !

यह झनक होती है उस सम्बन्ध की, जो जन्म से शुरू तो नहीं होती, परन्तु जन्मों जन्मों तक निबाही जाती है | ईश्वर भी सदैव सराहता है जिसे और आम भाषा में हम जिसे “मित्रता ´´ कहते हैं |

मैत्री में बोला गया हर शब्द वेदपाठ सा पावन होता है| और सखी का हर एक कार्य मन की वेदना का वेदनाहर होता है |

सखि की इसी विशेषता को बताती एक कविता प्रस्तुत है | सखि के लिए मंगलकामना और उत्साहवर्धन करती हुई एक प्रस्तुति :

माया – सखि मेरी

तुम दीपशिखा सी उज्ज्वल हो,
तुम प्रेम सरीखी सखि मेरी
तुमको क्या क्या उपमाएं दूँ?
तुम सबसे प्रिय हो सखि मेरी !

छीने ना कोई मुस्कान अधरों का,
अपना सम्बल कायम रखना |
करती हूँ यही निवेदन तुमसे,
बस जैसी हो वैसी रहना ||

मैं नित करूँ प्रार्थना देव से,
दैव तुम्हारा सबल रहे |
छू लो वितान की ऊंचाइयों को,
मन ऐसा ही दृढ़ -प्रबल रहे ||

– इला रानी

©Ila Rani. All rights reserved.

8 thoughts on “सखि के लिए

Leave a comment

Design a site like this with WordPress.com
Get started